आहार का मनोविज्ञान
हम विचार करते की मेरा मन पसंद भोजन करता हुं , पूर्ण शुद्ध आहार लेता हुं, अच्छे होटल का खाना खाता हुं , हमारा सामाजिक भोजन अच्छा है, हमारे घर का बना खाना बढ़िया है, फिर भी में मेरे मित्र के समान बल वान व् बुद्धिमान क्यों नही, मेरा बेटा या मेरा भाई भीं क्यों नही, आदमी सोचता है की में मेरा मन पसंद भोजन ऐसे खींच लेता जैसे लोहा चुंबक को मगर हक़ीकत तो यह है की चुंबक लोहा को खिचता है, परन्तु हमे हमारे पांच स्वेदन शील इन्द्रियों का प्रभाव मन के उपर कैसा प्रभाव बना रखा उसका विचार करना होगा, और हमारा मन पाचन संस्थान के अनुसार भोजन लेता है या अवचेतन मन के दुआरा
हम विचार करते की मेरा मन पसंद भोजन करता हुं , पूर्ण शुद्ध आहार लेता हुं, अच्छे होटल का खाना खाता हुं , हमारा सामाजिक भोजन अच्छा है, हमारे घर का बना खाना बढ़िया है, फिर भी में मेरे मित्र के समान बल वान व् बुद्धिमान क्यों नही, मेरा बेटा या मेरा भाई भीं क्यों नही, आदमी सोचता है की में मेरा मन पसंद भोजन ऐसे खींच लेता जैसे लोहा चुंबक को मगर हक़ीकत तो यह है की चुंबक लोहा को खिचता है, परन्तु हमे हमारे पांच स्वेदन शील इन्द्रियों का प्रभाव मन के उपर कैसा प्रभाव बना रखा उसका विचार करना होगा, और हमारा मन पाचन संस्थान के अनुसार भोजन लेता है या अवचेतन मन के दुआरा
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