मानव प्रकति = सभी मनुष्य की एक प्रकति होती है जो पहली जन्म ज़ात तथा दूसरी अपने संस्कारो के कारण उसको विकसित किया जाता है और ये विचारो से मनुष्य की प्रकतिजन्य गुणों के दुआरा और इन्द्रियों के बाध्यकारी कर्मो से जीवन जिया जाता है . किसी को ज्यादा बोलने की प्रकति किसी को ज्यादा खाने की प्रकति ये दोनों जीभ के नियन्त्र से बाहर होने के कारण आदमी को इन बाध्यकारी आदत से संकट में खुद ही पड़ता तथा दुसरो को भी परेशान करता है .
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