राग बुढ़ापा = बुढ़ापे में मनुष्य मूढ़ बुद्दी से अपनी समस्त इन्द्रियों को हठपूर्वक उपर से रोककर मन से उन इन्द्रियों के आहर पोषण को आनन्द के विषय [खान पान ] का विचार या चिन्तन करता है,वह भ्रम में पड़ा दुःख को ही प्राप्त करता है ,.............परन्तु अब तो मन से इन्द्रियों को नियंत्रण कर के, ठंडे ,बासी,अति पाचक,अति पोषक,अति उर्जा या अल्प उर्जा के बिना मांग किये हुए प्रचुर मात्रा में उपयुक्त संतुलित पोषण वाले आहार को ग्रहण करने की आवश्यकता होती है
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