बुधवार, 7 मार्च 2012

CULTURAL DIET LEARNING

भोजन में सामाजिक योगिता = कई बार समाज में व्याप्त ऐसी परम्परा होती है कि उस सामाजिक मान्यता के कारण उस भोजन में कुपोषणता में सहायक होती है ,जिसमे आत्म-संयम, आत्म-रक्षा, आत्म=निर्भता, आत्म-सन्मान तथा आत्मविश्वास के गुनौ का गुण-गान का प्रचारण का पारम्परिक स्थान्तरण होता रहता है कि ,किसी प्रकार के सामाजिक लोक  रीति-रिवाजो के भोजन के तौर कायम परम्परा का अनुसरण करते गौर्न्वित  महसूस करते मान देखा जाता है. वहा नई शिक्षा या नया ज्ञान को हीनता किं नजर या विरोधी नजर से देखा जाता है.वहा सिमित प्रेरणा एवं संवेग के कारण अच्छे लक्ष्य के पोषण को प्राप्त कि कमी पाई जाती है और दुसरे सामाजिक रीति-रिवाज के भोजनों का अवरोधं माना जाता है...    

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