रविवार, 6 मई 2012

DIET ABILLITY MOTIVATION,

दोषपूर्ण
आदत कैसे सुधारे ? = शाब्दिक तथा अशाब्दिक खाने पिने की एक दोषपूर्ण आदत बन चुकी होती है . जिस के कारण आत्म संधर्ष की वृदि दिखाई देती है. जिस का मुख्य कारण दोषपूर्ण संचार तथा आदतों पर अधिक ध्यान होने के कारण कुसमायोजन व्यवहार की जड़े इनमे अधिक होती है .समाधान सुधार के लिए परिवार ,मित्र ,डाक्टर को इन की सहानुभूति की बजाय परानुभूति का ज्ञान अच्छा होता जो समानुभूति पैदा करने में उत्तम अवसर का तन्त्र बनकर तुलनात्मक प्रेरणा जो स्वाथ्य के लाभदायक दिया जा सकता है . प्रेरणा [ ] आहार जो खाने पिने के लाभ तथा हानियों का ज्ञान की चर्चा करे . [ ] जिस आहार से जिस गुणों की वृदि हो उनकी, उनको अपने तन्त्र में चर्चा करे . [ ] मन में जब भी याद आये तो हानिकारक भोजन जो, तो नकारात्मक उन भोजन को मुझे पसंद नही कह कर टाल या नकार दे. की बहुत खा चूका अब कुच्छ नया हो जाये . [ ] उन बातो को ही सुने जो आपको नयापन तथा ताजगी प्रदान करे . [ ] इस प्रवेश आदत के बाद लक्ष्य निर्धारण करे की , अब तो इस शरीर को स्वस्थ रखने के लिए स्वस्थ लोगो [ मित्रो ] के साथ ही या उन के जैसा भोजन करेंगे और तनाव मुक्त जीवन स्वस्थ जीवन जियेगे . [ ] प्रकट अच्छी आदतों की तारीफ

ह्रदयरोग और आहार = ह्रदय रोग में आहार व्यवस्था भोगोलिक स्थति ,रोगी की उम्र तथा पाचन क्रिया का संचालन ,भोजन का व्याप्तिकर्ण , मल मूत्र का निष्कासन के साथ मानसिक संतुलन का अध्यन जरूरी तो होता ही है ,इसमें अगर भारतीय परम्परा के अनुसार कफ ,पित ,वात के मध्य नजर पोषण आहार निदान किया जाए तो अच्छी सफलता मिल सकती है .उच्च रक्त दाब तथा निम्न रक्त दाब दोनों ही एक दुसरे के विपरीत अवस्था होती है जिस में नैदानिक आहार चिकित्सा का सँचालन आवश्यक होता है .. पोषण मध्यस्थता = माना की किसी तो तत्वों के आपस में मेल नही आज के युग में कहा जा सकता की आग और पानी के बीच कैमेस्ट्री नही मिलती कारण की अगर पानी ज्यादा है तो आग को बुजा देगा, अगर आग ज्यादा है तो पानी को उड़ा [ मिटा ] देगा, ठीक वैसे ही दो बिना मेल वाले भोजन करेंगे तो उस आहर की कैमिस्ट्री नही बनेगी परन्तु आग और पानी के बीच मध्यस्थ के लिए एक बर्तन [घडा (पानी के लिए पात्र ) ] से पानी भर देंगे. तो आग से पानी को उबालकर आग और पानी का उचित उपयोग दौहरा लाभ ले सकता है आहार आवश्यकता - प्राय प्राणी मात्र सभी को आहार की आवश्यकता पडती है , पर्याप्त से कम या ज्यादा होने का हम अपने पड़ोसी या साथी से तुलनात्मक अध्यन करते तब तथा चलता है की हम में समानता या भिन्नता कितनी मात्रा है ,और में और मेरे मित्र के अध्यन में कितना अनुपातिक स्वास्थ्य का अंतर क्या आता है ,में दुबला पतला हु तो मेरा मित्र मुज से कितना मोटा ताजा होकर कितना स्वास्थ्य पूर्वक जीवन जीता है , अथवा बीमार होकर जीवन जीता है ,मै क्या काम काज करता हु और दो देशो की अगर तुलना की जाए तो पत्ता चलता की आज भारत के लोगो को अमेरिका के लोगो से कितना मोटापा सताता है क्योकि अमेरिका ज्यादा आहार खा रहा है ....... . . ज्ञान पोषण = किसान अपने पुत्र को शिक्षा देता की यदि हम व्रक्ष की जडो में खाद पानी दे तो सारी शाखाओ ,पत्तियों ,फूलों ,तथा टहनियों को स्वत ,पोषण मिल जाता है .वैसे ही अगर उदर का ध्यान रखा जाये और पोष्टिक भोजन प्रदान किया जाये तो सारे शरीर के अंग पोषित हो जाते है . परन्तु यहा पर मानव शरीर का सम्बन्ध है की उस की संतुलित पोषक आहार की आवश्यकता तथा आत्मरक्षा का ज्ञान आवश्यक है .आधुनिक जीवनशैली में स्वाद वाले आहार की आवश्यकता बढ़ रही है तथा भिन्न भिन्न प्रकार से उत्पादकों दुआरा प्रलोभन की मांग बढ़ रही है .जब की होना यह चाहिए की इस में कमी हो ,जो आवश्यक हो वो ही खाए और जरूरत हो तब ही खाए तो हमारा स्वास्थ्य अति उत्तम रहेगा...

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