मंगलवार, 12 मार्च 2013

माता का अति प्यार बच्चे के लिए है, एक कुपोषण व्यवहार का बनता है

माता का अति प्यार बच्चे के लिए है, एक कुपोषण व्यवहार का बनता है .आदते जिस प्रकार से छोटे बबूल के पौधे की भाती होते है. जो बबूल के पौधे के काँटे दीखते नही है ,बबूल का पौधे वृक्ष बन जाता तब पता चलता की काँटे , इस को आम क्यों नहीं बन सकते ! मैने प्यार से ज्ञान के पोषण में कोई कमी नही रखी .अति खर्चीलापन के कारण जो बचपन में गंदी आदत या नशीली सेवन के कारण माता के बाद वह स्वयं की पत्नी से झगड़ा करता जो अब आदत बन चुकी ,पति के कहने पर अंकुश लगाया होता तो आज ये नौबत नही आती .सब्जी में जैसे नमक की आवश्यकता होती है .वैसे ही पिता [ पति ] की डाट के दो बोल पर अमल करली होती. तो आज अच्छा होता. पिता या पति अपने परिवार के विरोधी नही होता बल्कि जवाबदेही के साथ अपना परिवार का निर्वाह करता है.एक अच्छे परिवार के लिए पति-पत्नी में समझ होना जरूरी होता है.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

नैदानिक चिकित्सा के बारे में.अब भारतीयों को आसानी से सुलभ ऑनलाइन चिकित्सा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की यह स्वास्थ्य उपचार का उपयोग किया जा सकेगा जो कई रोगियों से समर्थन प्राप्त हुआ है..गोपनीय ऑनलाइन परामर्श --
आपको हमारा परामर्श गोपनीयता की गारंटी है.हमारा ब्लॉग्स्पॉट, विश्वसनीय, सुरक्षित, और निजी है.