आहार
गुण दोष .........~....दिल है की मानता ही नही, सिखा गया आचरण आदमी छोड़ना नही चाहता मान लो की मीठा खाने से पाचन क्रिया खराब होती है, परन्तु यह ध्यान होने के बावजूद चेतन अवस्था से आदमी अपनी कमजोरियों के कारण अचेतन अवस्था में चला जाता है, जहा सिर्फ स्वाद के वसीभूत उन भोजन के हानियों को देखना भूल जाता जो जीवन में बिमारियों का आमन्त्रण स्वागत और पालन पोषण में लगा रहता और भ्रम में डाक्टर, वैद्धो और हकीमो के अस्पतालों में स्वास्थ्य को मृग की भाति कस्तुरी वन में खोजते है प्रत्येक आहर तत्वों के गुण दोष होते है और ये एक समय तक ही लाभ देते है फिर अपने दोषों को प्रकट करते है .
गुण दोष .........~....दिल है की मानता ही नही, सिखा गया आचरण आदमी छोड़ना नही चाहता मान लो की मीठा खाने से पाचन क्रिया खराब होती है, परन्तु यह ध्यान होने के बावजूद चेतन अवस्था से आदमी अपनी कमजोरियों के कारण अचेतन अवस्था में चला जाता है, जहा सिर्फ स्वाद के वसीभूत उन भोजन के हानियों को देखना भूल जाता जो जीवन में बिमारियों का आमन्त्रण स्वागत और पालन पोषण में लगा रहता और भ्रम में डाक्टर, वैद्धो और हकीमो के अस्पतालों में स्वास्थ्य को मृग की भाति कस्तुरी वन में खोजते है प्रत्येक आहर तत्वों के गुण दोष होते है और ये एक समय तक ही लाभ देते है फिर अपने दोषों को प्रकट करते है .
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