शादी से पहले करवाना होगा "मर्दानगी" टेस्ट !
राजस्थान पत्रिका में आज 29 अगस्त को छापी इस खबर का पूर्ण रूप से विरोध करता हूँ, खबर निम्नलिखित प्रकार से हैं, मेरे विचार संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा से जो इस खबर ने नीचे लिखता हूँ ज़रुर पढ़ें. चेन्नई। शादियाँ टूटने से बचाने के लिए अब पुरूषों को शादी से पहले मर्दानगी टेस्ट करवाना होगा। मद्रास हाइकोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वो पोटैंसी टेस्ट को अनिवार्य रूप से लागू करवाए। यौन संक्रमण और नपुंसकता को लेकर बिखर रहे वैवाहिक जीवन पर मद्रास हाइकोर्ट ने चिंता जाहिर की है। कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए सरकार को नपुंसकता जांच को जरूरी बनाने का सुझाव दिया। साथ ही कोर्ट ने धोखे से शादी रचाने वालों को सजा दिए जाने का सुझाव भी दिया।मद्रास हाइकोर्ट ने केन्द्र और राज्य सरकार से कहा है कि शादी से पहले मेडिकल चैक अप को जरूरी बनाने पर विचार कर सकती है। साथ ही अगर कोई व्यक्ति अपनी नपुंसकता छिपाकर शादी करता है तो उसके खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जा सकती है। ग़ौरतलब है कि कोर्ट में कई ऐसे मामले सामने आए है जिनमें अपनी नपुंसकता को छिपाकर शादी की गई और बाद में जब मामला सामने आता तो नौबत तलाक तक आ जाती। इसी के चलते मद्रास हाइकोर्ट ने ये अहम फैसला दिया है। [ इस लेख का क़ानूनी पक्ष से अदालत के फैसला से हमारा विरोध नहीं, हमारे विचार सिर्फ नैदानिक मनोविज्ञान के पक्षों से निम्नलिखित प्रलेखन हैं. ]
भारतीय कोर्ट के फैसले वकीलों के सबूतों के आधार पर होता हैं. जो सभी सबूत सत्य हो अथवा गलत, कानून अँधा होता हैं. फैसले को गरीब के हाथ इतने लम्बे नही होते की आगे अपील कर सकें.
आज की उन महिलाओं को और उनके पति को "संज्ञानात्मक व्यवहार चिकित्सा" की आवश्यकता होती हैं. हकीक़त कुछ और ही होती हैं, यदि औरत को अति कामुकता से विचलित चित को नियंत्रण करने में विफलता होती तब ये स्थिति आती हैं. ब्रह्मचर्यं सिर्फ गरीब ही हो सकता, प्राय हर अमीर या सत्ता सुखी मनुष्य को एक नई जवानी आ ही जाती जो कटू सत्य हैं. गरीब की हालात स्वीकार्यता किसी को नहीं होती, औरत को तो वो मर्द पसंद होता जिसकी कमर और कमाई में जोर होता हैं. [ क्षमा करे वो माता बहने जो सतीत्व से अपने कुल की शोभा बढ़ा रहीं. उन को मेरा प्रणाम ] अधिकतर मामला संज्ञान या चिंतन का माना जाता हैं. भारतीय संस्कृति मैथुन को पर्दा में मान्यता हैं, "नपुंसक" हिंजड़ा जो जन्म जात ही कहलाता बाकी सारे "मर्द" ही होते, कई बार भीतरी सांवेगिक एवं मनोवैज्ञानिक कारणों का बाहरी तनावों से नहीं होता बल्कि आंतरिक एवं अतर्कसंगत विचारों और विश्वासों से होता हैं. जो व्यक्तिगत में होता हैं इसलिए उन्हें सोचने के लिए बाध्य करता हैं की उनकी ख़ुशी के लिए उनकी इच्छाओ की पूर्ति आवश्यक हैं. एक मनोवैज्ञानिक का परामर्श उस रोगों के इसे अविवेक पूर्ण व्यवहार और विश्वासों की पूर्ति के लिए बसे जो वर्षो स्वीकार कर कुसमायोजित दैनिक अभ्यास की बजाय इसे विश्वास नये अनुकूल व्यवहार करने में निर्देश से नैदानिक चिकित्सा करता हैं.
कामुक विचलन या विकृतिया
कामुक विचलन के कारण अनेक प्रकार से हो सकता हैं.
कामुक प्रदर्शन प्रवृत्ति
कामुक दर्शन प्रवृत्ति
वस्तु - कामुकता
परपीडन कामुकता
स्वपीडन कामुकता
कौटुम्बिक व्यभिचार
बाल-रति
बलात्कार
हस्तमैथुन
समलिंगी कामुकता
पशुगामी कामुकता
वेश्यावृति कामुकता [ दोनों पक्षों जैसे आजकल पुरुष भी स्त्रियोचित वेश्यावृति करते हैं ]
विवाह पूर्व एवं विवाह के अतिरिक्त मैथुन सम्बन्ध
लैंगिक अनुपयुकता
इस प्रकार से असामान्य मनोविज्ञान के कारण का अध्ययन आवश्यक होता हैं, जो नैदानिक मनोविज्ञानी आराम से उपचार कर सकते.
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