आज मनोविज्ञान पृष्ठ मेरे प्रथम गुरु माता-पिता,गुरु तथा राज गुरु को प्रणाम, के साथ समर्पण ।
सद्गुरु बिरला ही कोई, साधू-संत अनेक ,
सर्प करोड़ो भूमि पर, मणि युक्त कोई एक।
मनोविज्ञान = मन का विज्ञान, मन, दिल, आत्मा में रहे विचारों की ग्राहकता की महकता को जाना जाता।जिसको कुव्यवस्थित से सुव्यवस्थित करना , सिखा हुआ वो आचरण, उस में जो कमी या त्रुटी के कारण से मनोदैहिक समस्याओं का समाधान करना जैसे बीमारी होती राई भर और रोगी उसको बताता पर्वत के समान ,भ्रम-विभ्रम और कल्पिक भटकाव में वैकल्पिक नैदानिक चिकित्सा से उपचार किया जाता है।
सद्गुरु बिरला ही कोई, साधू-संत अनेक ,
सर्प करोड़ो भूमि पर, मणि युक्त कोई एक।
मनोविज्ञान = मन का विज्ञान, मन, दिल, आत्मा में रहे विचारों की ग्राहकता की महकता को जाना जाता।जिसको कुव्यवस्थित से सुव्यवस्थित करना , सिखा हुआ वो आचरण, उस में जो कमी या त्रुटी के कारण से मनोदैहिक समस्याओं का समाधान करना जैसे बीमारी होती राई भर और रोगी उसको बताता पर्वत के समान ,भ्रम-विभ्रम और कल्पिक भटकाव में वैकल्पिक नैदानिक चिकित्सा से उपचार किया जाता है।
मानव चेतना
मानव का मनोविज्ञान = चेतना का ज्ञान प्राय साधारण मनुष्य, जानवर पशु पक्षी, किट, पतंगे, जलचर ,थलचर तथा नभचर प्राणियों में चेतन ज्ञान करीब-करीब सभी प्राणियों में समान रूप से पाया जाता खाने-पिने, सोने, रक्षा करने तथा मैथुन करने का ज्ञान।
मानव चेतना = इन सब में सर्वश्रेष्ठ होती
चेतना की प्रकृति = आठ प्रकार की विभाजित होती, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि, और अहंकार।
चेतना में = चेतना में उत्पति, स्थिति, ध्वंस, निग्रह, एवं अनु ग्रह ये पांच कार्य सदा होते है।
चेतना का ज्ञान = अज्ञान के कारण ज्ञान ढका रहता हैं।
मानव चेतना = इन सब में सर्वश्रेष्ठ होती
चेतना की प्रकृति = आठ प्रकार की विभाजित होती, पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि, और अहंकार।
चेतना में = चेतना में उत्पति, स्थिति, ध्वंस, निग्रह, एवं अनु ग्रह ये पांच कार्य सदा होते है।
चेतना का ज्ञान = अज्ञान के कारण ज्ञान ढका रहता हैं।
बहुत शानदार खोल देंगे आप तो दिल की बीमारी ,
जवाब देंहटाएंGay
जवाब देंहटाएंGay ka manovigyani k
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