गुरुवार, 12 फ़रवरी 2015

स्वाइन फ्लू

 स्वाइन फ्लू - शूकर इन्फ्लूएंजा, जिसे H1 N1 या स्वाइन फ्लू भी कहते हैं. विभिन्न शूकर इन्फ्लूएंजा विषाणु [ SIV- एस.आई.वी ] इन्फ्लूएंजा कुल के विषाणुओ का कोई भी उपभेद हैं. जो की सुअरों की स्थानिकमारी के लिए उत्तरदायी है. 2009 तक ज्ञात एस .आई.वी उपभेदो में इन्फ्लूएंजा सी और इन्फ्लूएंजा ए के उपप्रकार एच 1 एन 1 [ H1 N1 ]  एच 1 एन2  [ H1 N2 ] एच 3 एन 1 [ H3 N1 ], एच3 एन1
स्वाइन फ्लू एक प्रकार की नई बीमारी हैं. जो की साधारण सर्दी, खासी, और बुखार जैसे लक्षण होते हैं. लेकिन कभी कभार जान लेवा भी होते हैं. यह एक नये प्रकार से के रोगाणु से फैलता हैं, जो की  सबसे पहले 2009 में पहचाना गया था. इसमें नयापन यह है की यह वायरस का जीन [ gene ] में अनेक परिवर्तन हैं, जो पहले वायरस  में नहीं देखे गए हैं. साधारणतया सर्दी, खासी और बुखार सभी जानवरों में होता हैं. यह वायरस के कारण होता हैं. इस वायरस के जीन हमेशा परिवर्तन होता रहता हैं. इस कारण इसका इलाज करना मुश्किल होता हैं. साथ ही इस वायरस का किसी जिव को संक्रमित करने का क्षमता बढ़ते रहते हैं. यह सुअरों, चिड़ियों और मनुष्यों से फैलता हैं. यह जानलेवा भी हो सकता हैं. ये फ्लू वायरल जानवर, चिड़िया और आदमी में एक साथ फैलता हैं.

 प्रचार 

यह एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फेल सकता है. यह किसी रोगी के छिकने से, खांसने से, हाथ धोने से, किसी दूसरे व्यक्ति से फेल सकता हैं.

लक्षण 

व्यक्ति को अन्य सर्दी जैसे, इस बीमारी में भी बुखार आना, ख़ासी, छिकना, गले में खरास, गला दुखना, नजला, सिरदर्द, थकावट, ठंडा लगना, एवं  कमज़ोरी लग सकती हैं. कुछ लोगो को उल्टी, दस्त भी हो सकते हैं. और कुछ  लोगो को गम्भीर बीमारी से मौत  भी हो सकती हैं.     

आयुर्वेद उपचार -    

आयुर्वेद उपचार में गिलोय अकेली या सहायक जडीबुटी से निवारण में इसका रस या काढ़ा उपयोग लिया जाता जाता है. गिलोय अज्ञात कारणों से आने वाले बुखार को मिटाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, गिलोय एक रसायन होने से उर्जा को बढ़ाती हैं. भूख को बढ़ाती जिससे कमज़ोरी नहीं आती हैं, उल्टी को बंद करती, जी का मिचलाना बंद करती हैं,  



होम्योपैथी उपचार 

ज्ञात सूत्र बताते की वर्ष 1918 में फैली स्पैनिश फ्लू की महामारी का उदाहरण मिलता है , जिसमें दुनिया भर में पांच करोड़ से अधिक लोग मारे गए थे. उन्होंने कहा कि उस दौरान जिन लोगों का एलोपैथिक पद्धति से इलाज किया जा रहा था, उनकी मृत्यु दर 28.2 प्रतिशत थी. जबकि होम्योपैथी पद्धति से इलाज कराने वालों की मृत्यु दर 1.05 प्रतिशत थी.

"गैलसेमियम और ब्रायोनिया नामक दो होम्योपैथिक दवाएँ उस समय एच1एन1 को रोकने में कारगर साबित हुई थीं. इन दवाओं का इस्तेमाल आज भी उपयोगी साबित हो सकता है."

आहार 

 पूरक आहार के रूप में और सहायक आहार में फल अनार की आवश्यकता अवश्य समझें ये सभी बीमार लाक्षणिक शारीरिक अंगो पर उर्जा देता है !



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