आहार का मनोविज्ञान = मनुष्य एक सामुदायक प्राणी है , वह अपने माता पिता या अभिभावक से सामाजिक खान पान का चलन के अनुसार भोजन करना सीखता है .उपरांत अपने पड़ोसी , मित्रो , समाचारों पत्रों ,टीवी ,रेडियो ,गुरूजी तथा अपने विवेक जो चेतन अवचेतन से अपने पांच ग्यानेंद्रियो जो स्वेदनशील होने के कारन उनके नियन्त्र्नो के बिना आहार आदते विकसित होती है , जिस में स्वास्थ्य वर्धक तथा हानि कारको को अपनाता है ,फिर एक आदत के रूप में स्वीकार कर लेता है..............आदत को ऐसा समजता है की .मै आहार को चुम्बक की भाति ढूंढ़ लेता हु ..........................................परन्तु वास्तव मे ऐसा नही होता .जब मालूम असलियत पता चलता तो मालूम होता की लोहा चुम्बक को नही ढूंढ़ता बल्कि चुम्बक लोहे को ढूंढ़ता है जो अब नई नई बीमारियों को निमन्त्रण देता नजर आता है ...........जिसको आज
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