बुढ़ापा राग = आदमी उम्रभर अपनी जवानी के आहार के आनन्द को भूल नही पाता और अब मन के राजा को अपनी इन्द्रियों का दास होने का अवसर प्राप्त होता है ,वो पुराणी बाते यादो का आज प्रतिय्शिकरण सताता की जवानी में खूब खाते पीते, वह ही अब खाना खाए , परन्तु अब समय बदल गया मन अब उस आहार को मांगने का राग अलापता, परन्तु अब यह तन कमजोर हो गया इस को तो एक पुराने मकान की तरह मरमत की आवश्यकता होती, उसी प्रकार से स्वाद को नही देखकर दातो से जैसा चबाया या बिना दातो के खाया पिया जाये और आतों से पचाया जाय उस आहार को ध्यान देकर सब्र रखकर,मन में सूज उत्त्पन्न कर के बुढापे में जवानी के खाने पीने के राग को विराम देने की आवश्यकता होती है,और अब तो संतोष के साथ नया जीवन जीने का आनन्द लेने के दिन होते है .............................................
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