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सोमवार, 18 जून 2012
वट =-शुत्रमेह - में कोपल व् जटा खिलाते है .स्त्रियों के योनिदोष को दूर करने के साथ इसकी जटा [ वटजटा ] के लेप से स्त्रियों के ढीले स्तन कठोर होते है .कर्ण – रोगों में भी वटशीर लाभदायक होता है .
वट – बरगद –बडलो – बरगद शीतवीर्य ,कषाय ,ग्राही ,गुरु ,स्तंभन ,मूत्र संग्रहनीय
,रुक्ष्ण ,वमन ,मूर्छा ,तृष्णा, दाह, रक्तपित्त,विसर्प महिलाओ के योनिदोष तथा
पुरुषों के लिंगदोषको दूर करने वाला होता है . उपरोक्त
सभी गुण छाल व् दूध में पाये जाते है.बहुमूत्र में मूल की छालका क्वाथ
देते है .मधुमेह में
इसके फलों से लाभ होता है ..सड़े दांत – में दूध भरते है तो पीड़ा
कम होती है कमर और जोड़ो का दर्द में दूध की मालिश की जाती
है .स्वप्नदोष, शीघ्रपतन ,शुक्रमेह ,शुक्र पतलापन को दूर करने का उत्तम गुण होता
है .यह शीतग्राही, वर्णलेखन ,उत्तमांग बलदायक
होता है -शुत्रमेह - में कोपल व् जटा खिलाते है .स्त्रियों
के योनिदोष को दूर करने के साथ इसकी जटा [ वटजटा ] के लेप से स्त्रियों के ढीले
स्तन कठोर होते है .कर्ण –
रोगों में भी वटशीर लाभदायक होता है .
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