बाध्यकारी प्रकति [ आदत ] = मानव की किस प्रकार से अपनी आदत बुरी बन चुकी होती जिसका अंदाज ठगे जाने के बाद ही पता चलता की मैने मेरा स्वास्थ्य अपने हाथो से खोया ,क्योकि मनुष्य जहा रहता वहा अपनी मनमानी की एक आदत बना दी होती, की किसी का कहना नहीं मानना ,मानलो उस को पता नही की सर्दी के मौसम में प्याज नही खाना क्योकि जुखाम हो सकता है ,परन्तु वो इन्सान अपनी जिद के कारण जवाब देगा तो किसे से प्रतिस्पर्धा रखता होगा तो नकारात्मक कहेगा की वो [ मम्मी ,पापा ,दोस्त या भाई बहन ] का हवाला देगा की ये तो भी तो खाते है ,परन्तु उसको यह मालूम नही की जो खाते उनको जुखाम नही लगता कारण की उन की प्रकति उष्ण है ,और आप जो शीत प्रकति के है तो जनाब रुकिए बार बार ऐसे भोजन नही खाए जिस से आपको जुखाम पैदा करते हो और बुढ़ापे में नुमोनिया सताये
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