बाध्यकारी प्रकति = आपने देखा होगा की बहुत सारे लोग घुटनों के दर्द से पीड़ित,जोड़ो के दर्द से पीड़ित और कमर के दर्द से पीड़ित अपना बरसो से इलाज भी कराते चतुराई पूर्वक अपने आराम होने का प्रमाण देते ,परन्तु देखा जाये तो ये लोग बर्षों से नित नए डाक्टर के पास इलाज कराते नजर आते और इस से पूर्व कराते उस उपचार को [ इलाज को ] असफल बताते ,कुछ लोग दैनिक दर्द निवारक गोलिया एक नशे के रूप में खाते परन्तु ये बीमारी बारबार, निरंतर बनती क्यों उसका ध्यान नही करते .क्योकि ये लोग अपने आप पर तो कम विस्वास होता और अपनी अच्छे आहार की संकल्प शक्ति कमजोर करके स्वाद के चक्र में खुद को एक बाध्यकारी मानकर भोजन का आनन्द लेते है .जरा विचार कीजिये की अगर आप कोई दीपक प्रकाश के लिए लगाते है तो घी का दीपक ,तेल का दीपक ,और केरोसिन का दीपक तीनो ही उजाला देंगे, साथ ही साथ ज्यादा धुँआ कौन सा दीपक देगा ....और कम धुँआ तथा बढिया उजाला कौनसा दीपक देगा .......
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