बाध्यकारी आदत = ज्ञान तथा अज्ञान ,चेतन ,अर्धचेतन तथा अचेतन [अवचेतन ] भय, भ्रम, मोह ,संकल्प ,प्रेरणा तथा धर्मसंकट तनाव या आफत के कारण इस शरीर में एक बाध्यकारी आदत का निर्माण उस तरह हो चूका होता की जीस तरह एक आल [ लौकी ,धिया ] को हम रोज पैमाने से नही नाप सकते और उस को दो चार दिन के बाद अगर निरिक्षण करते तो अवश्य पत्ता चलता है की उस आल का विकास कितना हुआ ठीक , इसी प्रकार से अपने परिवार के बच्चो को जहाँ आदते कितनी बिगड़ी उस का पैमान यह होता की अपने घर पर आये महमानो या दोस्तो को पूछने ,उन की हाजरी में जाने के बाद अनुसन्धान किया जाये या उनके दोस्तों के यथा स्थान भेजने से ही पत्ता चलता है की मेरा बच्चा किस प्रकार के विक्रत आहार और विहार के लिए बाध्यकारी आदत से पोषित किया अथवा हुआ जाता है , जिस से नकारात्मक दिशा मिलती और समाज में हीनता ,दीनता ,तिरस्कार ,दया का पात्र बनना पड़ता है ,परन्तु अधिकतर लोग आहर ग्रहण के व्यवहारात्मक परिवर्तन अपने जीवन में लोगु करने में कठिनाई महसूस करते है. लेकिन अति भोजन या अल्प भोजन के ज्ञान की दिशा में कोई नैदानिक प्रयास शामिल किया जाये तो सफलता जरुर मिलती है ...
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