दोषपूर्ण आदत कैसे सुधारे ? = शाब्दिक तथा अशाब्दिक खाने पिने की एक दोषपूर्ण आदत बन चुकी होती है . जिस के कारण आत्म संधर्ष की वृदि दिखाई देती है. जिस का मुख्य कारण दोषपूर्ण संचार तथा आदतों पर अधिक ध्यान होने के कारण कुसमायोजन व्यवहार की जड़े इनमे अधिक होती है .समाधान सुधार के लिए परिवार ,मित्र ,डाक्टर को इन की सहानुभूति की बजाय परानुभूति का ज्ञान अच्छा होता जो समानुभूति पैदा करने में उत्तम अवसर का तन्त्र बनकर तुलनात्मक प्रेरणा जो स्वाथ्य के लाभदायक दिया जा सकता है . प्रेरणा [ १ ] आहार जो खाने पिने के लाभ तथा हानियों का ज्ञान की चर्चा करे . [ २ ] जिस आहार से जिस गुणों की वृदि हो उनकी, उनको अपने तन्त्र में चर्चा करे . [ ३ ] मन में जब भी याद आये तो हानिकारक भोजन जो, तो नकारात्मक उन भोजन को मुझे पसंद नही कह कर टाल या नकार दे. की बहुत खा चूका अब कुच्छ नया हो जाये . [ ४ ] उन बातो को ही सुने जो आपको नयापन तथा ताजगी प्रदान करे . [ ५ ] इस प्रवेश आदत के बाद लक्ष्य निर्धारण करे की , अब तो इस शरीर को स्वस्थ रखने के लिए स्वस्थ लोगो [ मित्रो ] के साथ ही या उन के जैसा भोजन करेंगे और तनाव मुक्त जीवन व स्वस्थ जीवन जियेगे . [ ६ ] प्रकट अच्छी आदतों की तारीफ करे .ह्रदयरोग और आहार = ह्रदय रोग में आहार व्यवस्था भोगोलिक स्थति ,रोगी की उम्र तथा पाचन क्रिया का संचालन ,भोजन का व्याप्तिकर्ण , मल मूत्र का निष्कासन के साथ मानसिक संतुलन का अध्यन जरूरी तो होता ही है ,इसमें अगर भारतीय परम्परा के अनुसार कफ ,पित ,वात के मध्य नजर पोषण आहार निदान किया जाए तो अच्छी सफलता मिल सकती है .उच्च रक्त दाब तथा निम्न रक्त दाब दोनों ही एक दुसरे के विपरीत अवस्था होती है जिस में नैदानिक आहार चिकित्सा का सँचालन आवश्यक होता है .. पोषण मध्यस्थता = माना की किसी तो तत्वों के आपस में मेल नही आज के युग में कहा जा सकता की आग और पानी के बीच कैमेस्ट्री नही मिलती कारण की अगर पानी ज्यादा है तो आग को बुजा देगा, अगर आग ज्यादा है तो पानी को उड़ा [ मिटा ] देगा, ठीक वैसे ही दो बिना मेल वाले भोजन करेंगे तो उस आहर की कैमिस्ट्री नही बनेगी परन्तु आग और पानी के बीच मध्यस्थ के लिए एक बर्तन [घडा (पानी के लिए पात्र ) ] से पानी भर देंगे. तो आग से पानी को उबालकर आग और पानी का उचित उपयोग दौहरा लाभ ले सकता है आहार आवश्यकता - प्राय प्राणी मात्र सभी को आहार की आवश्यकता पडती है , पर्याप्त से कम या ज्यादा होने का हम अपने पड़ोसी या साथी से तुलनात्मक अध्यन करते तब तथा चलता है की हम में समानता या भिन्नता कितनी मात्रा है ,और में और मेरे मित्र के अध्यन में कितना अनुपातिक स्वास्थ्य का अंतर क्या आता है ,में दुबला पतला हु तो मेरा मित्र मुज से कितना मोटा ताजा होकर कितना स्वास्थ्य पूर्वक जीवन जीता है , अथवा बीमार होकर जीवन जीता है ,मै क्या काम काज करता हु और दो देशो की अगर तुलना की जाए तो पत्ता चलता की आज भारत के लोगो को अमेरिका के लोगो से कितना मोटापा सताता है क्योकि अमेरिका ज्यादा आहार खा रहा है ......... ज्ञान पोषण = किसान अपने पुत्र को शिक्षा देता की यदि हम व्रक्ष की जडो में खाद पानी दे तो सारी शाखाओ ,पत्तियों ,फूलों ,तथा टहनियों को स्वत ,पोषण मिल जाता है .वैसे ही अगर उदर का ध्यान रखा जाये और पोष्टिक भोजन प्रदान किया जाये तो सारे शरीर के अंग पोषित हो जाते है . परन्तु यहा पर मानव शरीर का सम्बन्ध है की उस की संतुलित पोषक आहार की आवश्यकता तथा आत्मरक्षा का ज्ञान आवश्यक है .आधुनिक जीवनशैली में स्वाद वाले आहार की आवश्यकता बढ़ रही है तथा भिन्न भिन्न प्रकार से उत्पादकों दुआरा प्रलोभन की मांग बढ़ रही है .जब की होना यह चाहिए की इस में कमी हो ,जो आवश्यक हो वो ही खाए और जरूरत हो तब ही खाए तो हमारा स्वास्थ्य अति उत्तम रहेगा...
इसे ईमेल करेंइसे ब्लॉग करें!Twitter पर साझा करेंFभारतीय आहार = भारतीय आहार में मसालों को पूरक आहार के रूप में खाए जाते है ,जिसमे मानव की त्रिदोष प्रकति का भी ध्यान रख कर उपयोग लिया जाता है, इन मसालों में आधुनिक मानक मान, वैज्ञानिक पद्दति से प्रमाणित खरे उतरे है ,जिस में प्रचुर मात्रा में फाइबर ,आयरन ,केल्सियम ,विटमिन ,फोस्फोरस ,और प्रोटीन तो पाया जाता और खाने के बाद तुरंत जल्दी हजम हो जाता है, भारतीय आहार की एक यह भी विशेषता रहती की मौसम की जानकारी, भौगोलिक जानकारी की उपलब्धता के अनुसार ही बनाया [ पकाया ] जाता है, इन मसालों में ह्रदय ,कलेजा ,गुर्दा व् पाचन संस्थान को पूर्ण ऊर्जा प्रदान करने की क्षमता होती है .......
इसFacebook पर साझा करेंभारतीय पूरक आहार = मेथी को प्रसूता महिलाओ को लड्डू बनाकर खिलाया जाता ,जोड़ो के दर्द, कमर दर्द में भी पूरक आहार के तोर में लड्डू बनाकर भी खिलाया जाता ,त्रिदोस [कफ ,पित्त ,वायु ] को ध्यान में रख कर योग्य अनुपात में अन्य मसाले भी मिलाते और सुगन्धित मसाले मिलाये जाते है ,इस की सुगंध दुधारू पशु के दूध तथा घी में तब आती है जब पशु पालक अपने पशु को इस मेथी को चारे [पशुआहार ] के रूप में पशुओ को खिलाते है, आज के नई नई जीवनशैली की बीमारियों में आधुनिक पूरक आहार के तौर खिलाया जाता है और मेथी के बीजो को अंकुरित बनाकर भी खिलायuuइसे ब्लॉग करें!भारतीय पूरक आहार = मेथिका , मेथी भारत में सभी जगह पाई जाती है,बीजो को मसालों में डाला जाता है ,इस की कोमल पत्तो का साग -सब्जी बनाई जाती है ,और इस को दवाई बनाने के काम में ली जाती है ,यह स्वाद में कडवी होती है ,उष्ण वीर्य होता है ,कफ,वात,और ज्वर को समाप्त करती है,दीपन करती है ,भूक की रूचि जगाती है ,और गुण यह है की बल को बढ़ाती कब्ज का नाश करती तथा वात को हरती है , मेथी की पत्ती पित्त का शमन करती ,पाचन को सुधारती शीतलता देती ,पाद निकालती तथा सुजन को दूर करती है ,मेथिका बीज वात का नाश करते पोष्टिकता को बढ़ाते,खून का संग्रह करके शरीर के सुजन को दूर करते ,पित्त प्रकति वालो को कब्ज को दूर करते पेट में आव को मिटाती , महिलाओ के प्रवस के बाद लड्डू बना कर खिलाया जाता है , इससे भूख लगती है और पुरे भारत में बुजुर्गो के मेथी के लड्डू को पूरक आहार के रूप में सर्दी में खाए जाते है जिस से कफ नही बने तथा जोड़ो का दर्द नही सताये Facebook पर साझा कबाध्यकारी प्रकति = आपने देखा होगा की बहुत सारे लोग घुटनों के दर्द से पीड़ित,जोड़ो के दर्द से पीड़ित और कमर के दर्द से पीड़ित अपना बरसो स
अच्छा लिखा आप ने , धन्यवाद
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