आवला = आवला ताजे पके उए दीपन ,पाचन ,बल्य ,पोष्टिक ,पित्तशामक, कांतिवर्धक ,त्वग्रोगनाशक ,आनुमोलिक , बाजीकर ,और रोचन होते है सूखे आवले पित्तस्त्रावक, स्तम्भन ,शोणितस्थापन ,स्लेश्म्घ्न, और सूखे व् उबला आवला में विटामिन सि [ c ] कभी नष्ट नही होता है .आवला में छ रस मे से लवण रस को छोड़कर सभी पाचों प्रकार के रस होते है .आवला सेवन से पित्त दोष का नाश होता है .सभी रसायनों में श्रेष्ठ रसायन कहलाता है .रसायन आयु को बढते है .आज के युग में अच्छा एंटीओक्सीडेंट कहलाता है .आखो के लिए हितकारी .सब से ज्यादा मात्रा में विटामिन सि [ c ] पाया जाता है, जो घाव भरने में सहायता करता है .च्वन ऋषि ने इसी आवले का च्वनप्राश बनाकर अपना खोया योवन प्राप्त किया था .आज भी सभी च्वनप्राश उत्पादक इकाइयाँ भी आवश्यकतानुसार आवले का उपयोग करती है .प्रमेह तथा पीलिया रोगों में पूरक आहार तथा ओषधि के रूप में काम में लीया जाता है .मधुमेह [ डाईबीटीज ] में आवला व् हल्दी मिला कर खिलाते है .त्रिफला में इस का तीसरा भाग मुख्य घटक होता .ब्रह्मा ,विष्णु, महेश के स्वरूप में हरदे बेहडा और आवला को महत्व माना गया है .
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बुधवार, 6 जून 2012
आवला = .प्रमेह तथा पीलिया रोगों में पूरक आहार तथा ओषधि के रूप में काम में ली जाती है .मधुमेह [ डाईबीटीज ] में आवला व् हल्दी मिला कर खिलाते है
2 टिप्पणियां:
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