रविवार, 29 जुलाई 2012

नास्ता

नास्ता 
 वाह ! नाश्ता  [ नास्ता ] प्राय सभी को करने की आवश्यकता होती है, ओह यह तो दिन का एक सबसे महत्वपूर्ण भोजन का हिस्सा होता है, कुछ लोग घर का बना और कुछ लोग बाजार का बना नास्ता करते है. नास्ता पौष्टिक, आसानी से हजम होने वाला, त्वरित प्राप्ति होना की लालसा के साथ आवश्यकता बनी रहती है. सुबह का नास्ता की बजाय कभी कभी दिन में भोजन की उपलब्धता नही होने की अवस्था के कारण भी नास्ता की जरूरत पडती है परन्तु इन नास्ता में सभी को अपनी अपनी देह के अनुरूप, कार्य के अनुरूप, और आय श्रोत्र के अनुरूप की आवश्यकता होती, जिसके कारण हमेशा एक दूसरे के लिए भिन्न भिन्न प्रकार के मांग को देखा जाना जरूरी होता है. इस नास्ता में असंतुलन आ जाता तो अल्प पोषण या अति पोषण का मनुष्य से बीमारी का शिकार हो जाता है. मान लो जिस की पाचन शक्ति कमजोर हो वह उच्च किलो कैलोरी का नास्ता की मात्रा लेता है तो निश्चित है आलस आएगा जिस से अपना काम काज में अवरोधन पैदा होगा और उस कर्तव्य कर्म में सफलता नही मिलेगी. और अगर भारी या ज्यादा काम-काज हो तो कम किलो कैलोरी का नाश्ता हो तो भी कर्तव्य कर्म में पूर्णतया सफलता नही  मिल पाती है. 

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