शनिवार, 7 जनवरी 2023

शिक्षा और संस्कार दो अलग अलग दिशा हैं ।

 बधाई हो 

आप जन्म से इंजीनियर है, आपने जन्म से अंग्रेजी सीखी, आपकी अंग्रेजी भाषा जन्म से है । आप जन्म से इंजीनियर बने, आप ऐसे ही है । बाकी हमारा मानना तो लोग स्कूल में जाते भी जैसा माहौल मिलता वैसे शिक्षा भी लेते है । 

दायरा व्यक्ति का कितना ये व्यक्ति से गतिविधि से पता चलता है, कुएं के मेंडक को, कुएं के कबूतर को एक सीमित ज्ञान ही होता है, अंग्रेजी भाषा कोई ज्ञान नहीं है, केवल भाषा है, जर्मन, चायना, और जापान में अंग्रेजी चलती भी नही, भारत में भी कोई एक भाषा का जानकर कोई दो भाषा का जानकार होता है, दो भाषा वाला ज्ञानी अपने आपको ज्यादा ज्ञानी समझता परंतु लोगो को 5 से 10 भाषा पर भी अधिकार होता है, उपकार मातापिता का होता जिसने हमको जन्म दिया होता है, नशे के आदि व्यक्ति ही माता पिता की सेवा नही करना चाहता क्योंकि नशा मुक्ति मिलती नही, व्यक्ति इंद्रियों का दास हो जाता, दास यानी गुलाम, गुलाम कभी आजाद होना नही चाहता, जब कोई पंछी को पिंजरे में बंद कर लेते है तो पंछी पिंजरे का आदि हो जाता तो फिर उड़ना नही जानता, क्योंकि पिंजरे में दाना मिल जाता है । पंख होते हुए भी वो उड़ नही सकता । उड़ना सीखा नही, केवल बैठना ही सीखा होता है । जब पहचान हो जाती तो पिंजरा आसानी से तोड़ा जा सकता है । फिर पक्षी / पंछी आसानी से उड़ सकता है । 

काम वासना में पड़ा व्यक्ति व्यभिचारी ही मना जाता है, क्योंकि प्रेरणा गलत मिली हुई होती है, लक्ष्य हीन जीवन होता है, सीखा आचरण व्यक्ति छोड़ना नहीं चाहता है। क्योंकि वो इंद्रियों का गुलाम हो चुका होता है, गुलाम कर्म तो करता पर परिणाम का पता नही होता की परिणाम क्या होगा । 

सावन के अंधे को सब हरा ही दिखता है, वैसे काम / सेक्स के अंधे को सेक्स ही दिखता है । 

विक्रम साराभाई ने श्री मद भागवत गीता पढ़ के ही भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्र स्थापित किया था, विक्रम साराभाई के अनुयाई अब्दुल कलाम मुस्लिम होकर भी गीता अध्याय पढ़ता था । एक पढ़ा लिखा व्यक्ति सोचे की में जो ज्ञान हासिल किया ये जन्म से और नया ज्ञान ( वकील इंजीनियर डाक्टर ) नहीं ले सकता क्योंकि क्योंकि दायरा सीमित है, एक दूसरा व्यक्ति होता है, एक ज्ञान से अधिक ज्ञान पर अधिकार जब रखता सीखने ने वातावरण मिले । लोग भारतीय भाषाओं के अलावा विदेशी भाषा का ज्ञान अर्जित करते, और किया जाता हैं, । व्यक्ति अपने आप पैदा नहीं होता, उसको पैदा किया जाता है, वैसे ज्ञान भी पैदा किया जाता है, वाल्मीकि डाकू थे, वातावरण मिला साधु हो गए थे, रामायण लिख डाली, सती पहले भी होती थी, सती आज भी होती पर कानून के कारण रूप बदल गया है, देखे बाला सतीजी जी रूपकंवर बिलाड़ा जोधपुर । 43 साल अन्न जल ग्रहण नही किया, दुनिया के वैज्ञानिक कोई आधार जान नही पाए की ये जिती जैसे है । मेवाड़ में वासना नही धर्म पर यात्रा की है, चुंडावत मांगी सैलानी ( प्रेम निशानी युद्ध में जाते समय ) सिर काट दे दिया क्षत्राणी । मेवाड़ कभी वासना में नही डूबा, सेक्स का कीड़ा नही बना, मेवाड़ साहस और शौर्य में सिर उठा जिया, कीड़े मकोड़े जैसे गटर में नही मरा, बल्कि पराक्रम भाव से जिया, गुलाम नही बना, व्यतनाम देश के राष्ट्र पति भारत के मिट्टी ले जा कर अपने देश में मिलते है, आज भी उनकी समाधि पर लिखा की ये महाराणा प्रताप के शिष्य की समाधि है । व्यतनाम देश जो अमेरिका से कभी नही हारा ।  

जय श्री राधे कृष्णा

हमे ज्ञान जो भी मिलता हमारी पांच इंद्रियों से मिलता है, हमारा शरीर एक रथ जैसे है, शरीर एक रथ है, पांच इंद्रिय घोड़े जैसे है, हमारे दो पांव रथ के दो पहिए जैसे है, मन राजा है, बुद्धि सारथी है, सारथी ( बुद्धि, विवेक ) जब सो जाता तो ये पांच घोड़े कहा जाना पता नही होता है, जब सारथी जगा होता तो लक्ष्य पर जाया जाता है । आंखों से कोई देखता तो उससे परिचय होता है, वैसे कान, नाक, जीभ और त्वचा से ज्ञान की अनुभूति होती है, बिना प्रेरणा से कोई ज्ञान नहीं मिलता । गलत प्रेरणा मिली तो गलत ज्ञान मिलेगा, जैसे किसी बर्तन में चावल भरे तो फिर उसमे दाल नही भरी जा सकती है, चावल खाली करके फिर दाल आसानी से भरी जा सकती है । 

जय श्री कृष्णा, हरे मुरारी .........🙏


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