माता का अति प्यार बच्चे के लिए है, एक कुपोषण व्यवहार का बनता है
माता का अति प्यार बच्चे के लिए है, एक कुपोषण व्यवहार का बनता है .आदत जिस प्रकार से छोटे बबूल के पौधे की भाती होते है. जो बबूल के पौधे के काँटे दीखते नही है ,बबूल का पौधे वृक्ष बन जाता तब पता चलता की काँटे , इस को आम क्यों नहीं बन सकते ! मैने प्यार से ज्ञान के पोषण में कोई कमी नही रखी .अति खर्चीलापन के कारण जो बचपन में गंदी आदत या नशीली सेवन के कारण माता के बाद वह स्वयं की पत्नी से झगड़ा करता जो अब आदत बन चुकी ,पति के कहने पर अंकुश लगाया होता तो आज ये नौबत नही आती .सब्जी में जैसे नमक की आवश्यकता होती है .वैसे ही पिता [ पति ] की डाट के दो बोल पर अमल करनी होती. तो आज अच्छा होता. पिता या पति अपने परिवार के विरोधी नही होता बल्कि जवाबदेही के साथ अपना परिवार का निर्वाह करता है.एक अच्छे परिवार के लिए पति-पत्नी में समझ होना जरूरी होता है.
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