घुटनों का दर्द ज्यादातर 40 वर्ष के बाद प्रारम्भ हो जाती है, सामन्यतय घुटनों में दर्द का प्रारम्भ में हल्का फुल्का दर्द रहता है, फिर धीरे धीरे सृजन, जकडन आना शुरू हो जाती है, चोट, मोच से भी घुटनों में दर्द होना होता पाया गया है, जिसने घुटनों में लचीलापन समाप्त हो जाता है, आधुनिक मेडिकल की भाषाओं बहुत नामो से वर्गीकृत किया गया है, जिसके लिए आधुनिक जाँच से ही पता चलता है, परन्तु 90 % तो जल्दी ठीक होने ने देरी का कारण व्यक्ति की लापरवाही होती है. जब दर्द प्रारम्भ होता उस समय एक मानसिक भय शुरू हो जाता है, उस भय की वजह से व्यक्ति लडखडाते चलता है, जिससे पाँव को सीधा खड़ा करने में भयातुर से असमर्थ हो जाता है, जिससे अपने शरीर का वजन सहन नहीं, कर पाता है,
बहुधा
1. दुर्धटना से भी घुटनों में दर्द होता है, गहरी चोट होना उसमे लापरवाही अनुचित होता है, ( गहरी चोट की 2. अवस्था में सर्जन डाक्टर से परामर्श आवश्यक है.)
2. जोड़ों के बिगड़ने से भी घुटनों में दर्द हो सकता है,
3. सीढ़ियां चढ़ने में दर्द होना शरीर का भारीपन हो सकता अथवा दुर्बलता के कारण भी दर्द हो सकता.
4. ऑक्सीजन का रक्त संचरण में बाधा आना भी घुटनों में दर्द का कारण हो सकता है.
5. खून का जमाव के कारण मॉस-पेशी जकडन के कारण घुटनों में हो सकता है.
6 . अक्सर मासपेशीय उत्तक में टूट-फुट होने से भी घुटनों में दर्द हो सकता है.
7. सबसे ज्यादातर आमदोष के बढने से ही घुटनों में दर्द होता है, जिसमे आधुनिक जांच से पता चलता की यूरिक एसिड बढ़ा हुआ होता है.
8. मोटापा में ज्यादा वजन होने से भी दर्द होता है.
9. आधुनिक समय कुछ लोग घुटनों में इंजेक्शन लगाते जो अल्पकालिक आराम देता और इंजेक्शन के अत्यधिकता से पैरों में विकृति से लकवापन देखा गया है.>>सावधान<<
10. अधिक आयु में घुटनों के आपरेशन के बाद भी विकृति देखी गई है.
अचेतन अवस्था के कारण
आज कल घुटनों के दर्द से परेशान महिला-पुरुष दोनों देखे जा सकते, ये बीमारी कही बाहर से नही आयी बल्कि ज्यातर व्यक्ति ने स्वयं निर्माण की होती है, आपने देखा होगा की, उदाहरण-पृथ्वी पर उगने वाली सभी प्रकार की वनस्पतियों के लिए वर्षा जी जवाबदारी नहीं होती, परन्तु वर्षा के बिना वनस्पति उग भी तो नहीं सकती, धरती की तरह हमारे शरीर को भी मिट्टी का बना ही तो मानते है, और इस मिट्टी में भी जो हम बोते वही उगता है, अर्थात जो भोजन हम करते उसके वायु विक़ार, वात विक़ार, के बढने से ही व्यक्ति के पेट में आम दोष उत्पन्न होता है, ये हमारा शरीर देहधारी जीवन का प्रश्न है, जिसमें आत्मा का स्वभाव सदैव सक्रिय रहना है, आत्मा की अनुपस्थिति में ये भौतिक शरीर हिल नहीं सकता, शरीर तो मृत समान है, इसका संचालन आत्मा व् बुद्धि से चलता है, आत्मा व् बुद्धि सदैव सक्रिय रहती है, एक क्षण भी रुक नहीं सकती,
अगर आप को स्वस्थ होना है तो
आप अपनी जीवनशैली को बदलना होगा, वो आहार खाने पीने में प्रतिबंध करना होगा, जिससे वायु विक़ार पैदा हो, यूरिक एसिड बनना रुके, आप के पेट में आमदोष बनना रोकना होगा, टूटे-फूटे प्रोटीन की मरमम्त करके, रक्त संचालन हो कर ऑक्सीजन की आपूर्ति कर के, उत्सर्जन मार्गो को ऊर्जा वान बना कर उसको क्रियान्वयन बनाना होगा. जिससे आपके शरीर में जमा वायु दोष निकल सकें. मासपेशीय में लचीलापन आकर फिर से खोया विश्वास, खोया स्वास्थ प्राप्त किया जा सकें.
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