आर्यवृत की पृष्ट भूमि मे पारिवारिक जीवन से वंश वृद्दि मे दुनिया से सर्वोतम संस्कृति का निर्माण किया गया था, पति पत्नी के पारिवारिक दांपत्य जीवन सफल जिये और अपने औलाद को अच्छे संस्कार के साथ अच्छी सुविधाओ का ज्ञान दिया जाये जिसमे पहला पहला सुख निरोगी काया हो सके, जिसमे ब्रहमचर्य जिसमे 25 वर्ष की आयु तक अपने वीर्य की रक्षा करे जिससे 100 वर्ष की आयु स्वस्थ जीवन से ज़िंदगी गुजार सके, परंतु आज आधुनिक असभ्य विदेशी संस्कृति मे वो विकृति वाली नंग सभ्यता जो पति पत्नी मे आपसी प्यार, विश्वास का अभाव, एक पशुओ जैसी जीवनशैली का आदर्श जीवन मे तनाव, तलाक, अपने बच्चो के प्रति गैर जवाबदारी बढ़ गई, जब की भारतीय सभ्यता मे पितृऋण के लिए जिया जाता है, तीन पीढ़ियो का आपस मे संचालन से जीवन जीना पड़ता है, दादा, पिता और पुत्र की आपसी मान मर्यादा के संस्कार के साथ दादी, माता और पुत्र, पत्नी के लिए अच्छे संस्कारो की जवाबदारी होती थी।
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