जब आदमी अपना लिंग परिवर्तन करा सकता, तो गलत अभिविन्यास को क्यों नहीं सुधार सकता है ।
गतल शिक्षा संज्ञान का अभिविन्यास को सही अभिविन्यास क्यों नहीं सुधारा जा सकता है, लोग समलैंगिकता को सिमित शब्दों में बोल भ्रम जाल फैलाया जाता है, अगर किसी किशोर के साथ बाल यौन शौषण हुआ वो भी बहला फुसलाकर फिर वह किशोर किसी को अपना यौन शोषण से पीड़ित हो निरंतर अभ्यास में रहता तो युवा होने पर शादी करना चाहता तो उसको क्यों भ्रमित किया जाता है, समलैंगिक से सम्बन्ध बनने को आदि हो चूका जो एक लत या आदत हो चुकी उसको अब इस आदत से छुटकारा चाहता है तो उसे भी वैवाहिक सुख लेने का अधिकार है, और उसके अधिकारों को क्यों रोका जाए.
संज्ञान किसी प्रकार से कोई भी औषधि से बदला नहीं जाता बल्कि व्यवहारिक वापस संज्ञान से नई सूझ उत्त्पन की जाती है. मैथुन एक खेल जैसा है, एक मैदान में अच्छी तरह खेलता हो सकता दूसरा मैदान थोडा कठिनाई भरा हो सकता मगर उस कठिनाई को दूर करके दुसरे मैदान में भी आसानी से खेल सकता है .
चार वर्ष से बहुत युवाओं को ठीक किया जा चूका हैं, बहुत लोग आधुनिक दवाई [ मनोचिकित्सक की एलोपैथी दवाई ] छोड़ चुकें, शादी हो गई बच्चें हो गए हैं.
समलैंगिक कब, कैसे, किसके साथ बना का अध्ययन जरुरी होता, समलैंगिक के कारणों का अध्ययन भी जरुरी हैं.
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