बुधवार, 8 जुलाई 2020

मुख मैथुन समलैंगिता की आदत कैसे छूटी ?

समलैंगिक का उपचार होता है ।
समलैंगिकता अनुसंधान पत्र [ शौध पत्र ]
एक नई खोज, समलैंगिक कैसे बना ?

कैसे समलैंगिकता का ईलाज / उपचार हुआ  ।
समलैंगिकता >>> अभिभावक ने नैतिक आचरण नही सिखाया आचरण ।

1.  मैथुन अभिप्रेरणा ओर निष्पादन [ Sex Motivation and Performance ]
           शोधकर्ता  डाक्टर रघुनाथ सिंह राणावत
           Dietitian & psychologist
          माता आयुर्वेदिक दवाखाना, सापोल, राजसमंद, राजस्थान ।
2. प्रयोज्य परिचय –
प्रयोज्य का नाम - 159
यौन – पुरुष
आयु – 20  
व्यवसाय - बेरोजगार 
शिक्षा -  विधार्थी  [ प्रयोज्य का नाम गोपनीय रखा गया है । ]
3॰ समस्या परिचय
घर वाले शादी की बात करते उसकी चिंता बहुत होती थी, दादा दादी के प्यार का अभाव रहा था । क्योकि प्रयोज्य की समस्या जब वो 6 -7 साल उम्र का था, उस समय ताऊ का का बेटा किसी बहाने साथ मे सुला लेता था, पॉर्न वीडियो दिखाता, उस की तरह से प्रेम आलाप भी करता था। किस देना, लिंग को मुह मे देना, ये क्रम चार साल चला, लगातार नहीं पर कभी कभार समय मिलने पर ये समलैंगिकता संबंध होता था, दूसरा ताऊ का लड़का भी इसी प्रकार से वो अपना लिंग मुह से मैथुन करवाता था। फिर कक्षा 6 मे भर्ती हुआ तब हॉस्टल मे रहता था। हॉस्टल मे आपसी सेक्स क्रिया करते थे, ये क्रम होने से लगा की मै स्त्रीत्व का व्यक्तित्व वाला हूँ, कक्षा 8 - 9 मे लगभग उस समय प्रयोज्य की आयु 14-15 वर्ष हो सकती तब आदतन समलैंगिकता का अभ्यास हो गया था । मुखमैथुन का अभ्यास आधा घंटा होता था। ये बुरी आदत हो चुकी थी । फिर कक्षा 10 मे आया तो हॉस्टल छोडकर कमरा किराए ले लिया । 
प्रयोज्य अब आदतन समलैंगिक हो चुका था । शाम को दोस्त आते उनके साथ समलैंगिक मैथुन क्रिया होती थी । कक्षा 11 मे आने पर, मुखमैथुन समलैंगिक क्रिया को नियंत्रण मे कर लिया था । कक्षा 12 मे आने पर सामाजिक संघठन मे उनके अच्छे विचारो से प्रभावित होकर उस सामाजिक संघठन से प्रशिक्षण के लिए आता जाता रहता था तो उस समय सामाजिक संघ के विचारो से प्रभावित होकर समलैंगिक मुखमैथुन बिलकुल बंद कर दिया था। हस्त मैथुन करना जारी था, हस्त मैथुन करते समय दिमाग मे लड़के का चित्रण करके करता था ।  कक्षा छ मे पाढ़ता था तब हॉस्टल के लड़कों मे रहने वाले सहपाठी की प्रेरणा से पहली बार हस्तमैथुन किया था । लिंग बदलवाने की इच्छा होती थी ।
 ( 1 ) समस्या / कठिनाईया - जो आपस मे दोस्त बने थे, जब वो दोस्त आपस मे नही मिलते तब तक बेचेनी होती थी। जब अपनी आप बीती चिंता को अपने दोस्त को बताई तो वो बात नहीं करता था, तो शंका उत्तपन्न होती की वो बात क्यो नहीं करता था । 
साथ ही साथ मे नाच,गान मे बहुत रुचि होने लगी और स्त्रीत्व के रूप मे बहुत रुचि हो गई, अच्छे कपड़े पहनना, संवारना नारियो की भाति की इच्छा होने लगती थी। दोस्तो से ताना मिलता की लड़कियो जैसे क्यो चलता है। अग्रणी की कमी भी पाई गई । 
( 2 ) जीवन यापन के लिए लक्ष्य है की सेना मे भर्ती होने की कड़ी चाहत होती है । 
( 3 ) व्यक्तित्व - प्रयोज्य का साधारण व्यक्तित्व था, स्वभाव शांति प्रिय था, लड़ाई झगड़ा करना नही जानता था। परिवार मे धमकी देना नहीं आता, रूठता या नाराज होना नही जानता  था । 
बाल्य जीवन से संज्ञानात्मक प्रेरणा और प्रोत्साहन का प्रभाव मैथुन शिक्षण और निष्पादन मे कई रूपो मे पड़ता है। मैथुन सफलता, असफलता, पुरुस्कार, परिणाम के ज्ञान आदि प्रोत्साहन के अनेक रूप है। सहयोग, स्पर्धा, प्रतियोगिता इत्यादि भी प्रोत्साहन के ही रूप है। इनका निश्चित प्रभाव व्यक्ति के मैथुन शिक्षा तथा निष्पादन पर पड़ता है ।
( 1 ) तत्परता से लाभ -- विषम लैंगिक होने के लिए परामर्श के समय जब सही तत्परता रही तब विषम लैंगिक निर्माण के विचार होता जाता था, तब प्रयोज्य सही प्रतिक्रिया विचार करने और समलैंगिक विचारो से अपने आप को बचाने लाभ करता था ।
( 2 ) तत्परता की हानि -- गलत तत्परता उत्पन्न विचार होने से प्रयोज्य गलत दिशा मे प्रयास के विचार आते थे, जिससे समस्या समाधान कठिन लगता था और समस्या के विचार बदल नही जाते तब तक तत्परता को छोडकर सही दिशा मे सक्रिय नही होता था ।

4॰ उद्देश्य –
प्रस्तुत अनुसंधान का उद्देश्य शिक्षण के अभ्यास से प्रयोज्य के वैवाहिक दांपत्य जीवन मे महिला के प्रति आकर्षण निष्पादन पर परिणाम के ज्ञान [ अभिप्रेरणा ] के प्रभाव को सीखना है । उदेश्य व्यक्ति के ज्ञानात्मक सीखने मे धनात्मक स्थानातरण की घटनात्मक प्रदर्शन का अनुसंधान किया । ओनलाइन परामर्श मोखिक मे धनात्मक स्थानांतरण वास्तव मे उद्दीपक तथा प्रतिक्रिया की समानता पर आधारित हुआ ।

5॰ परिकल्पना – मेरे संगत अध्ययनो के आलोक मे परिकल्पना बनायी की परिणाम के ज्ञान [ अभिप्रेरणा ] के प्रभाव को दिखाना है । जो दो क्रिया के उद्दीपक एकांश भिन्न तथा प्रतिक्रिया एकांश अभिन्न होते है, तो उनके बीच धनात्मक स्थानांतरण होता है । [ समलैंगिकता व्यवहार तथा विचारो का प्रभाव वाला व्यक्तित्व आसानी से बदले जा सकते है । ]
6॰ अनुसंधान की कार्य प्रणाली –
मौखिक अभ्यास के साथ अनुसन्धानात्मक अभिकल्प
योजना – प्रयोज्य के पास एक स्मार्ट फोन, बिना रुकावट बेजिझक स्थान का चयन कर के एक निश्चित समयावधि तय किया गया था । महीने मे 10 ऑनलाइन परामर्श नियंत्रित अवस्था मे प्रयोज्य समझा दिया गया था । फिर प्रयोज्य से अंतनिरीक्षण प्रतिवेदन  लिया गया तथा दोनों अवस्थाओ के परिणामो का तुलनात्मक अध्यन किया फिर देखा की धनात्मक स्थानांतरण धटित हुआ या नही

7॰ परीक्षण सामग्री – मेरे दुवारा निर्मित शाब्दिक श्रवण प्रश्नोत्री आवश्यकता अनुसार स्पष्टीकरण पुछ लिया जाता था । प्रतिक्रियाओ को लिख दिया जाता था ।
( 1 ) व्यक्तित्व के लक्षण  चिंता से ग्रस्त, संदेह की प्रवृति, संवेगात्मक नियंत्रण की कमी देखी, भ्रम  पाया, स्थिरता की मध्यम चिंता, विचारो मे अस्थिरता एवं असंगति, संवेगात्मक अनियंत्रण, कल्पना की अधिकता, एकाग्रता की कमी, कमजोर याददास्त, और तनाव से पीड़ित पाया गया ।

8॰ अंतनिररिक्षण रिपोर्ट – परिणाम एवं व्याख्या
(1) अधिगम स्थानातरण मौखिक सीखने मे धनात्मक स्थानांतरण की घटनाओ को श्रवण शक्ति से कौशल सहायता करता रहा ।
(2) निर्देश निर्देशन की पालना के प्रयोज्य हमेशा तत्पर रहा था ।
“शुरू में ये काम प्रयोज्य को कठिन लगा की ये काम मुझ से होगा की नही लेकिन कुछ समय बाद ये कठिनाई दूर हो गई । पहले कठिन सवाल समस्याओ के समाधान के बाद उसको वैवाहिक ज़िंदगी सुनहरी दिखने लगी ।

9॰ विवेचना एवं निष्कर्ष – परिणाम पूछताछ से ज्ञात हुआ कि मेरी परिकल्पना सही प्रमाणित हुई कि परिणाम के ज्ञान [ अभिप्रेरणा ] के मिलने से निष्पादन बेहतर बन जाता है नियंत्रित अवस्था मे प्रयोज्य को उसके दुवारा किए गए निष्पादन के संबंधन मे जानकारी देता रहा था । इस प्रकार से परिणाम ज्ञान हो जाने से अशुद्धि बहुत घट गई और निष्पादन के गुण मे काफी प्रगति या उन्नति हो गई थी ।

प्रयोज्य ने नियंत्रित अवस्था कि अपेक्षा प्रयोगात्मक अवस्था मे बहुत कम त्रुटि की और उसका निष्पादन काफी उन्न्त बन गया । अनुसंधान से ज्ञात हुआ की शिक्षा के अंतनिरीक्षण प्रतिवेदन से भी निष्पादन पर परिणाम के ज्ञान [ अभिप्रेरणा ] का अनुकूल प्रभाव प्रमाणित होता है ।

10॰ निष्कर्ष - प्रस्तुत अनुसंधान के आधार पर निष्कर्ष निकलता है कि परिणाम के ज्ञान [ अभिप्रेरणा ] के कारण निष्पादन उन्न्त बन जाता है । परिणाम के ज्ञान होते रहने पर व्यक्ति को अपनी त्रुटि सुधारने तथा अपने निष्पादन को और भी अच्छा करने का अवसर मिलता है । कुलमिलाकर लड़के की समलैंगिक मानसिकता समाप्त हो चुकी और विषम लिंग मै अभूरुचि आ गई । अब लिंग बदलवाने की इच्छा नहीं  होती है । वह अपना खोया आत्म विश्वास अब आ गया,  मर्द होने का अहसास हो गया । प्रयोज्य की चिंता समाप्त हो चुकी थी। अब खुशी से जी रहा है । 
नोट - सामान्य भाषा मे कहा जा सकता है की मनोवैज्ञानिक परामर्श लेने से प्रयोज्य ठीक हो चुका और समलैंगिकता से विषमलिंग मे आसानी से विचारो की आदत को बदला जा सकता है । 

11॰ संदर्भ VMOUKOTA MAPSY 101, MAPSY 10



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