बुधवार, 7 दिसंबर 2022

बाल यौन शौषण समलैंगिक समस्या .

गुदा मैथुन मुख मैथुन - मूर्त और अमूर्त में संघर्ष

बाल यौन शोषण पीड़ित समलैंगिक

मनुष्य एक सामुदायिक प्राणी हैं, संसार में 200 देश हैं, हर देश में राज्यों का समावेश हैं . हर प्रान्त में समाज और उसकी मुलभुत अवधारण हैं. सामाजिक सम्बन्ध निराकार या अमूर्त होते हैं, जो केवल अनुभव से ज्ञात होता है. एक समाज से दुसरे समाज में आश्रिता के साथ जागरूकता होती हैं. समानता और असमानता का सहयोग या असहयोग भी होता हैं.

संसार की सर्वश्रेष्ट सभ्यताओं में भारतीय सभ्यता में जीवन जीने के लिए चार आश्रम व्यवस्थाओं का विकास किया गया हैं. जिसमे जिसमें प्रथम आश्रम ब्रहमचर्य आश्रम में भूमिका पालन के साथ भूमिका वचन होता की कोई भी किशोर अवस्था में बालक बुद्दी निकाल कर ब्रहमचर्य पालन करतें शिक्षा प्राप्त करने में ध्यान लगाएगा और मैथुन प्रवृति से दूर रहेगा और वीर्य रक्षा और करेगा.

25 साल की आयु के बाद वैवाहिक जीवन में अमूर्त मैथुन करेगा जो वंश वृदि में सहायक होगा, नहीं की लैंगिक आनन्द के लिए मैथुन किया जाएगा .

विवाह धार्मिक और वर्तमान क़ानूनी वैधानिक भी है, जो सभी धर्मो में प्रचलित है.

मैथुन एक स्त्री और पुरुष को शारीरिक आवश्यकता भी और सामाजिक आवश्यकता भी है. भारतीय समाज में मैथुन पति पत्नी के रिश्तो से पारदर्शी और आदर्श में माता पिता से प्राप्त होता है. जो सामाजिक स्वीकृत व्यवहार है. वैवाहिक पति पत्नी सम्बन्ध पारिवारिक सामाजिक अलिखित मूल्यों पर निर्धारण है. पति पत्नी मैथुन अमूर्त होते है, जबकि पश्चिमी देश में पशुवत मूर्त रूप से आजकल सार्वजानिक देखने में आते है, पुरुष वेश्या का नाम अभी सुनने में नहीं आया पर आजकल कुछ समिति द्वारा संचालित दिल्ली जैसे शहरों में सुनने को आ रहा है, अश्लील साहित्य और इंटरनेट के माध्यम से नकारात्मक लैंगिक आंनद के साहित्य और वीडियो बहुत उपलब्ध है.

आधुनिक मनोविश्लेषण सिद्धात देने वाले वैज्ञानिक फ्रायड ने मन की तीन अवस्था बताई गई है. जो वर्तमान स्कुल, कालेज में पढाया जाता है, जब की 5500 पूर्व लिखित श्री मद्धभागवत गीता जैसे अनमोल शास्त्र को अनदेखा किया गया है, जिसमे पश्चिमी मनोविज्ञान खत्मः होता वहा से भारतीय मनोविज्ञान शुरू होता है.

1.       ईड – अच्छे बुरे का भेद नहीं होता, इस मन की एक ही इच्छा पूर्ति करना होता है. परिणाम के बारे में अज्ञान.

[ बाल यौन शौषण पीड़ित को भी बताया जाता जब की कारणों को कोई जानना नहीं चाहता. ये विकार समलैंगिक व्यक्ति में ब्रेनवाश करके भर दिया गया है. केवल लैंगिक आनंद को मैथुन अभिविन्यास नाम दे दिया गया जो भारतीय समाज संस्कृति के लिए घातक है. ] जो समलैंगिक किसी भी कारण से बना बस आन्नद छोड़ना नहीं चाहता, वैसे सिखा हुआ आचरण मुश्किल से छुटता है.

2.       ईगो – नैतिक अनैतिक ज्ञात लाभ हानि में भी सत्ताधारी बनने की चाहत. ज्ञात लापरवाह माना जा सकता है.

3.       सुपर इगो – प्रकास वान नैतिक मन धर्म सभ्यता, संस्कृति का ध्यान और उसको निभाना होता है.

समिति एक ऐसा संगठन है जो स्वार्थ पूर्ति के लिए बनाया जाता है. जो केवल अपने हितो को पूरा करता है, इनका उद्देश्य अपने सदस्यों सामान्य या विशेष इच्छाओं की संतुष्टि के अलावा कुछ नहीं, अगर कोई समिति के सदस्य बाल यौन शौषण पीड़ित समलैंगिकता उपचार का विरोध करते तो, अपने पुत्र भाई और परिवार के लगभग 12 वर्ष की आयु लडकें का किसी व्यस्क से बाल यौन शौषण करवा कर मुझे गलत साबित कर दे, की बाल यौन शौषण से समलैंगिक नहीं बनते.

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